फारूकी मामले की टिप्पणी पर फिर विचार की जरूरत

जस्टिस एस अब्दुल नजीर ने दो जजों से अलग राय रखते हुए अपने 42 पेज के फैसले में कहा, वर्ष 1994 के इस्माइल फारूकी मामले में यह टिप्पणी व्यापक समीक्षा किए बिना की गई कि मस्जिद इस्लाम का अभिन्न हिस्सा नहीं है और मुसलमानों द्वारा नमाज खुले समेत किसी भी जगह पर पढ़ी जा सकती है। उन्होंने कहा कि इस टिप्पणी पर फिर से विचार किए जाने की जरूरत टिप्पणी पर फिर से विचार किए जाने की जरूरत । है। इसके लिए इस मामले को बड़ी पीठ के पास भेजा जाना चाहिए। जस्टिस नजीर ने कहा कि सांविधानिक महत्व पर विचार करते हुए इस मामले को बड़ी पीठ के पास भेजा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के पिछले आदेशों से यह स्पष्ट है कि इस प्रश्न कि कोई विशेष धार्मिक परंपरा किसी धर्म का अनिवार्य या अभिन्न हिस्सा है या नहीं, पर धर्म के सिद्धांतों, नियमों और विश्वास के आधार पर विचार किया जाना चाहिए।                              



जस्टिस नजीर


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