घंटाघर की सुइयों पर अनदेखी की धूल


नई दिल्ली ! कभी जिन घंटाघरों की सुइयों की टिकटिक से पूरा शहर ताल मिलाता था, आज उनमें जंग लग गया है। हरिनगर घंटाघर में तो घड़ी का नामोनिशान ही नहीं बचा हैसब्जीमंडी घंटाघर की हालत भी बेहद खराब हैकमला मार्केट में बने घंटाघर की घड़ी सात साल से रुकी हुई है, इसमें भी जंग लग गया है। इस संबंध में मार्केट एसोसिएशन ने कई बार निगम से गुहार लगाई, लेकिन सुई बारह बजे पर ही अटकी हुई है। मार्केट एसोसिएशन के उपाध्यक्ष लखवीर सिंह का कहना है कि निगम न तो घंटाघर के संरक्षण के लिए कोई कदम उठाता है और न ही एसोसिएशन को ही कुछ करने देता है। सब मूकदर्शक बने धरोहर को खत्म होते देख रहे हैंएसोसिएशन ने घंटाघर में लगी घड़ी को बदलकर इलेक्ट्रॉनिक घड़ी लगाने का फैसला किया है। निगम ने यदि घड़ी को ठीक नहीं किया तो साठ साल पुरानी घड़ी को हटाकर आधुनिक घड़ी लगाई जाएगी। सब्जी मंडी घंटाघर के पास दुकान चलाने वाले 70 वर्षीय गुरविंदर सिंह ने बताया कि जब वह छोटे थे तब घंटे की आवाज से समय का पता चलता था। तब सीढ़ी से चढ़कर कर्मचारी चाबी भरता था। यह ठीक है कि अब समय घंटाघर की घड़ी से काफी आगे निकल गया है, लेकिन दिल्ली के इतिहास का गवाह बने घंटाघरों को सहेजना चाहिए। कई स्थान घंटाघर के नाम से ही जाने जाते हैं, इनका संरक्षण जरूरी है। हरिनगर घंटाघर चौराहे से रोज हजारों लोग गुजरते हैं, लेकिन शायद ही किसी ने गौर किया होगा कि इसमें लगी घड़ी गायब है। ये सभी धरोहर की श्रेणी में आते हैं, लिहाजा इनकी देखरेख का जिम्मा निगमों का है। घंटाघरों की हालत देखकर निगम के प्रयासों का अंदाजा लगाया जा सकता है। घंटाघर ब्रिटिश समय की वास्तुकला का सुंदर नमूना हैं। दिल्ली में तीन घंटाघर अंग्रेजों के समय बनाए गए थे। इनमें से एक टाउन हाल के सामने हुआ करता था, दूसरा पुलबंगश के पास सब्जी मंडी में मौजूद है और तीसरा हरिनगर में है। बाकी छोटे घंटाघर आजादी के बाद बनाए गए, जिनमें कमला मार्केट का घंटाघर शामिल है I


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