छत्तीसगढ़ मॉडल की आहट

11 सितंबर 2019 । छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल 'गांधी और आधुनिक भारत' विषय पर बोल रहे थे। उन्होंने कश्मीर के ताजा हालात का ज़क्रि करते हुए ऑडियन्स की ओर सवाल उछाला एक करोड़ लोगों को बंधक बना कर शेष 129 करोड़ लोगों का समर्थन हासिल किया जाए ये कैसा भारत है? सन 2013 में जब गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने गुजरात मॉडल को जोर शोर से पेश किया तो देश की मीडिया ने और उनकी पार्टी के प्रोपगेंडा तंत्र ने उसे इस देश के वैकल्पिक राजनीतिक कथानक के रूप में पेश किया । उन्होंने जब इस बात पर जोर दिया कि गुजरात और उत्तर प्रदेश की प्रति व्यक्ति आय में कितना अंतर हैतो कुछ लोगों ने इस बात की ओर इशारा किया कि हरियाणा व महाराष्ट्र जैसे कांग्रेस शासित प्रदेशों की प्रति व्यक्ति आय गुजरात से कहीं अधिक थी। इस पर यह तर्क दिया गया कि इन राज्यों ने कोई ऐसा वैकल्पिक मॉडल तैयार नहीं किया है जिसे देश एक मॉडल के रूप में अपना सके। इसके बाद जब केरल मॉडल का तर्क सामने रखा गया, जहाँ मानवीय विकास के सभी सूचक गुजरात से बेहतर थे, तो यह कहा गया कि केरल मॉडल का श्रेय व्यक्ति विशेष या दल विशेष को नहीं दिया जा विशेष या व्यक्ति विशेष को ही चुनने का विकल्प होता है। इसके बाद गुजरात मॉडल को इतनी बार दोहराया गया कि वह एक सच बन गया और वह आज तक भारतीय राजनीतिक विमर्श का सबसे बड़ा सच बना हुआ है। यहाँ तक कि जब 2019 में श्री राहुल गांधी ने न्याय योजना समेत कृषि समस्या के समाधान को केंद्र में रखकर एक वैकल्पिक मॉडल का प्रस्ताव रखा तो जनता उसे स्वीकार नहीं कर पाई ,क्योंकि उसके पीछे गुजरात जैसा कोई उदाहरण नहीं था, और टेलीविजन के युग में जनता शब्दों की नहीं दृश्यों की भाषा समझती है। उन्हीं दिनों बिहार के मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार ने भी अपना तथाकथित सुशासन मॉडल का दावा पेश किया। इसके तहत उन्होंने यह तर्क रखा कि गजरात तो पहले ही एक विकसित प्रदेश था पर बिहार जैसे पिछड़े राज्य में सुशासन को लागू कर दिखाना एक बड़ी उपलब्धि है, और क्योंकि यह मॉडल उत्तर प्रदेश और बिहार में ही मुख्यतः प्रासंगिक है तो उनका दावा ज़्यादा मज़बूत था। लेकिन इस दावे को भी यह कह कर ख़ारिज कर दिया गया कि वह केवल कुछ प्रशासनिक योग्यता और सूझ-बूझ पर आधारित है और उसमें कोई वैकल्पिक कथानक नहीं है। मसलन वह न तो इस देश में किसी नई सामाजिक व्यवस्था की बात करता है जिसमें धार्मिक व जातीय समाजों को किसी नए प्रकार के क़रार में बाँधा जाए फिर चाहे वह सांप्रदायिक और जातीय वर्चस्ववादी क़रार ही क्यों न हो। नीतीश के बिहार मॉडल में विदेश नीति, व्यापार नीति,कश्मीर, आंतरिक सुरक्षा जैसे मुद्दों का जिक्र नहीं था और उनका मॉडल राष्ट्रीय मॉडल नहीं बन सकता था। इस प्रकार से अहमदाबाद से उठ कर दिल्ली की सत्ता पर काबिज हुए गुजरात मॉडल ने एक वर्चस्ववादी राजनीतिक विमर्श को देश का मुख्य विमर्श बना दिया। गांधी और आधुनिक भारत पर अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए श्री बघेल ने कहा कि स्व। विनोबा भावे ही गांधीजी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी थे। यह कहते हुए श्री भूपेश बघेल यह भी स्पष्ट कर रहे थे कि अंतिम व्यक्ति पर केंद्रित सर्वोदय का सिद्धान्त ही किसी भी राजनीतिक विमर्श का आधार हो सकता है। उन्होंने कहा कि गांधीजी का सत्याग्रह एक प्रयोग था। यह उनका ही हौसला था कि वह जो मॉडल पेश कर रहे थे वह भी एक प्रयोग ही था । दरअसल कोई भी मॉडल एक प्रयोग होता है देश की गति को फिर से परिभाषित करने का। श्री भूपेश बघेल ने इस मौके पर गांधी जी के महत्व को प्रतिपादित करते हुए यह भी कहा कि भारत में आधुनिकता की शुरुआत सामाजिक सुधारों से आजादी से लगभग तीन चार दशक पहले ही शुरू हो गई थी। इन पंक्तियों के साथ श्री बघेल गांधी युग की ही बात कर रहे थे क्योंकि भारतीय जनजागरण के मूल्यों को आम जनमानस की भाषा और व्यवहार में ढालकर उसे गांधीजी ने सार्वभौमिक मूल्य बना दिया था और देश आधुनिकता की ओर बढ़ चला था। श्री भूपेश बघेल ने आज की ASNA देते हुए कहा कि आज पूरे देश में डर का माहौल है और ऐसा इसलिए है कि आज की सत्ताधारी शक्तियों ने देश में हर तबके को दूसरे तबके का भय दिखाते हुए पूरे देश को भयभीत कर दिया है । आज यहाँ कोई भी खुद को सुरक्षित महसूस नहीं कर रहा है। श्री बघेल ने गांधीजी के अंतिम दिनों को याद करते हुए कहा कि अपने ऊपर बम से हमला होने के बावजूद गांधीजी ने सुरक्षा लेने से मना कर दिया था। यहाँ तक कि उन्होंने अपनी प्रार्थना सभा में आने वालों की तलाशी की इजाजत भी नहीं दी थी। इसीलिए ये कह सकते हैं कि गांधीवाद का अर्थ निरंतर निर्भीकता का अभ्यास है और आज यहाँ निर्भीकता राजसत्ता के सामने साहस के साथ मुखर होकर सच ___बोलने से ही परिलक्षित होती है। अपने इस वक्तव्य में श्री बघेल ने कश्मीर पर भी अपनी स्पष्ट राय रखी थी। उन्होंने कहा कि एक करोड़ लोगों को बंधक बनाकर शेष 129 करोड़ लोगों का समर्थन हासिल किया गया है, यह समाज में व्याप्त भय की पराकाष्ठा है ! उन्होने कश्मीर पर सोशल मीडिया की चर्चाओं का उल्लेख करते हुए उसमें निहित पितृसत्ता की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित किया। उन्होंने आज फैलाए जा रहे संकीर्ण राष्ट्रवाद के बरक्स गांधीजी के राष्ट्रवाद की चर्चा की। उन्होंने कहा कि उसमें किसी को राष्ट्रविरोधी नहीं बताया गया और किसी से भी उसके राष्ट्रवादी होने के प्रमाण नहीं माँगे गए। गांधी जी का राष्ट्रवाद सभी धर्म, जाति और वर्गों की समानता पर आधारित था। भूपेश बघेल ने कहा कि गांधी जी ने हिन्दी के प्रचार और धन की कुछ हाथों में केंद्रित न होने देने की अपनी कोशिशों को राष्ट्रवाद का आधार बनाया थाउन्होंने युवाओं का यह कहकर आह्वान किया कि गांधी और आजादी के आंदोलन के अन्य नेता जब आंदोलन में आए थे तो वो भी नौ जवान थे और नौजवान ही आज के इस भय का मुकाबला कर सकते हैं। 1920 में भाषाई आधार पर प्रदेश कांग्रेस कमिटीयों का गठन गांधीजी के संघीय ढांचे पर विश्वास को दर्शाता है और धारा 370 के मामले में इसी संघीय ढांचे पर चोट की गई है। इस तरह आज के सारे राजनीतिक व सामाजिक मुद्दों को गांधीवादी व्याकरण और दर्शन में व्यक्त करके श्री भूपेश बघेल ने एक ऐसी बड़ी बाधा को पार किया है जो सभी विपक्षी पार्टियों की, विशेष कर वामदल और कांग्रेस की विचारधारा को विदेशज बताकर ख़ारिज कर देती थी। अब बात करते हैं उस छत्तीसगढ़ मॉडल की जो आज गुजरात , बिहार,केरल या हरियाणा और महाराष्ट्र जैसे राज्यों के शासन के मॉडल के मुकाबले विमर्श के केंद्र में आ गया है। अपने इस मॉडल पर विस्तार से चर्चा करते हुए श्री भूपेश ने अपनी सरकार की नीतियों को सामने रखा। उन्होंने बताया कि किस तरह ग्राम स्वावलंबन को आधार बनाकर एक विकास नीति बनायी गई है जिसे नरवा गरवा घुरवा बारी जैसे नारों के साथ लोगों तक पहुँचाने का प्रयास किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि आदिवासियों का उनके जंगल और जमीनों पर अधिकार सिद्ध है और टाटा की अधिगृहित भूमि लौटाना इसी विश्वास पर आधारित है। दूसरी ओर जब केंद्र सरकार वनाधिकार कानून में संशोधन लाकर आदिवासियों के इन अधिकारों का हनन करती है तो यह गांधी का तिरस्कार है । इसी के साथ मुख्यमन्त्री का नक्सल समस्या को मानवीय समस्या बताना भी यह _ दर्शाता है कि छत्तीसगढ़ मॉडल में विचारधारा का घाल मेल नहीं है और यह मॉडल विशुद्ध गांधीवादी भूमि पर खड़ा है।


Featured Post

 मध्यवर्गीय परिवारों का हाल किसी से छुपा नहीं है सरकारें आती हैं जातीं है परन्तु मध्यवर्गीय परिवारों कि हालत आज भी जस कि तस बनीं हुईं हैं इस...