ड्रोन हमले के दुष्परिणाम

तेल प्रतिष्ठान पर ड्रोन हमले के दुष्परिणाम


सऊदी अरब की तेल कंपनी आरमको पर ड्रोन रॉकेट द्वारा हुए हमले ने वैश्विक पेट्रो पदार्थों के मूल्य में वृद्धि कर दी है। कंपनी में कार्य ठप है। संयंत्रों के जीर्णोद्धार में कम से कम एक-डेढ़ महीना लगेगा। अब तक कच्चे तेल की कीमत 1991 में बढ़ी कीमत के बराबर हो चुकी है। ऐसे में आगामी छह माह अर्थव्यवस्था के लिए चुनौती भरे होंगे। भारत में इस घटना का व्यापक असर हुआ। तेल की कीमतें बढ़ने और शेयर मार्किट में कारोबर मंद पड़ने से निवेशकों के करोड़ो रुपये डूब चुके हैं। इराक के बाद भारत दूसरा देश है, जो सऊदी अरब से सबसे ज्यादा 80 प्रतिशत तेल आयात करता है। तेल संयंत्रों पर हमले की जिम्मेदारी यमन के हती विद्रोहियों ने ली है परन्तु अरब के मुसलिम देशों के प्रति धार्मिक, सामाजिक और व्यापारिक प्रतिस्पर्धा में लिप्त ईरान, यमन सहित इनके अनुगामी मुसलिम देशों में फैले हुए आईएस आतंकियों की हमले में कोई न कोई भूमिका अवश्य है। हूती विद्रोही विगत चार माह में सऊदी अरब के अलग-अलग स्थानों पर आतंकी हमला कर चुके हैं। यह समूह 2015 से अरब को अस्थिर कर रहा है। जहां सऊदी अरब स्थानीय गुप्तचरों के माध्यम से हमले के लिए सीधे-सीधे यमन स्थित हतियों व इन्हें इस काम के लिए भड़काने के लिए ईरान को जिम्मेदार बता रहा है, वहीं अमेरिका द्वारा जारी उपग्रहीय चित्रों से स्पष्ट हो रहा है कि हमले यमन नहीं बल्कि ईरान या इराक से किए गए। अप्रैल 2019 में आरमको ने दक्षिण कोरियाई तेल रिफाइनरी हुंडई ऑयलबैंक में 13 प्रतिशत की हिस्सेदारी अर्जित करने के लिए 1.24 बिलियन अमेरिकी डॉलर देकर एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किए थे। इस दिशा में आगे बढ़ते हुए आरमको ने पालैंड की प्रमुख तेल रिफाइनरी पीकेएन ऑर्लन के साथ उसे अरबी कच्चे तेल की आपूर्ति करने के एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किए। इतना ही नहीं, आरमको तेल एवं प्राकृतिक गैस उत्पादन के नए-नए कीर्तिमान स्थापित करता रहा है। आरमको एलएनजी बाजार में छा जाने का अपना लक्ष्य प्राप्त करने के लिए क्षमतावान संयुक्त उद्यमों और साझीदारों की खोज में है। ये ही कारण थे, जो अरब केंद्रित और ईरान-यमन-जॉर्डन आधारित तेल एवं प्राकृतिक गैस उत्पादकों के मध्य गलकाट प्रतिस्पर्धा बढ़ाने के प्रमुख कारक रहे हैंआरमको सऊदी अरब की राष्ट्रीय पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस कम्पनी है। इसकी स्थापना 1993 में कैलिफ्रेनिया-अरबियन स्टैंडर्ड ऑयल कम्पनी के नाम से हुई। 1944 में ये अरबियन-अमेरिकन ऑयल कम्पनी बन गई और 1988 में ये सऊदी अरबियन ऑयल कम्पनी/सऊदी आरमको बनी। 2018 के अनुसार इसका कुल राजस्व 355.9 बिलियन अमेरिकी डॉलर और 2018 में ही इसकी कुल आय 111.1 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी। कम्पनी का सौ प्रतिशत स्वामित्व सरकार के पास है। 2016 के अनुसार इसमें कार्यरत कर्मचारियों की संख्या 62216 है। आरमको विश्व की सबसे बड़ी कंपनी है, जो सर्वाधिक राजस्व अर्जित करती है। सऊदी आरमको विश्व के एकमात्र दीर्घ हाइड्रोकॉर्बन नेटवर्क का संचालन करती है। हाइड्रोकॉर्बन नेटवर्क प्रमुख गैसीय प्रणाली है


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