खतरे की घंटी

जलवायु परिवर्तन से बजी खतरे की घंटी


ब्रिटेन की इंटरनेशनल रिसर्च एंड एनालिटिक्स फर्म यूगोव द्वारा 28 देशों में किए गए ऑनलाइन सर्वेक्षण में सामने आया है कि 71 फीसद भारतीय जलवायु परिवर्तन के लिए मुख्य रूप से इंसानों को जिम्मेदार मानते हैं। वहीं भारत के विपरीत, अमेरिका, स्वीडन, सऊदी अरब और नॉर्वे जैसे देशों में 40 फीसदी से कम लोग इस बात पर सहमत हैं। 30 हजार लोगों पर किए गए सर्वेक्षण में यह भी सामने आया कि अमेरिका में छह फीसदी लोग इस बात को मानते ही नहीं हैं कि जलवायु परिवर्तन हो रहा है। वहीं, नौ फीसदी लोगों का कहना है कि जलवायु परिवर्तन तो हो रहा है, लेकिन इसके लिए इंसान जिम्मेदार नहीं है। सर्वेक्षण में 22 फीसदी भारतीयों का मानना है कि अब जलवायु परिवर्तन को नहीं रोका जा सकता। वहीं, 60 फीसद भारतीयों को विश्वास है कि भारत जलवायु परिवर्तन रोकने की दिशा में बेहतर काम कर रहा है। न्यूयॉर्क में 23 सितम्बर को संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन से पहले जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों से निपटने का आह्वान करते हुए शुक्रवार को भारत सहित दुनियाभर में हजारों जगह प्रदर्शन हुए। इन प्रदर्शनों में 50 लाख युवाओं ने सड़कों पर उतरकर न केवल अपनी एकजुटता प्रदर्शित की अपितु जलवायु परिवर्तन तुरंत रोकने की मांग की। मीडिया रिपोर्टों के अनुसार दुनिया के 139 देशों में लगभग पांच हजार स्थानों पर हुई बड़ी रैलियों के माध्यम से लोगों ने 23 सितम्बर के संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मलेन में ठोस निर्णय लेकर पृथ्वी पर बढ़ते तापमान को रोक कर जन जीवन को बचाने की अपील की। प्रदर्शनकारियों का कहना है जलवायु परिवर्तन से रोजगार और जीवन पर बुरा असर पड़ा हैं। ये हमारी बुनियादी सुविधाओं को तहस नहस कर देते हैं और संचार और व्यापार को अवरुद्ध करते हैं। बड़े देशों की उदासीनता के चलते दुनियाभर में जलवायु खतरे की घंटी बज उठी है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 23 सितंबर को न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र जलवायु कार्रवाई शिखर सम्मेलन में भाग लेंगे। यह हाल के दशकों में होने वाले सबसे बड़े जलवायु सम्मेलनों में माना जा रहा है। भारत के जलवायु वैज्ञानिकों का मानना है कि पिछले एक दशक में बहुत तेजी से भारत में जलवायु परिवर्तन हो रहा है। ऐसी तेजी पिछले 100 वर्षों में नहीं देखी गई। देश में कार्बन उत्सर्जन की दर को देखते हुए वैज्ञानिकों ने चेताया है कि वर्ष 2030 तक भारत का औसत तापमान लगभग एक डिग्री बढ़ जाएगा। यदि जलवायु परिवर्तन यूं ही होता रहा तो गर्मियों में कश्मीर व उत्तराखंड में बर्फ दिखाई नहीं देगी। साथ ही कार्बन-डाइऑक्साइड की मात्रा को कम करने के लिए समय रहते कारगर कदम नहीं उठाए गए तो यहां की नदियों का जल स्तर बढ़ेगा। भयंकर आंधी तूफान, बाढ़ के साथ-साथ भीषण गर्मी का सामना करना होगा। जलवायु में असामान्य परिवर्तन वैज्ञानिकों के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती है और अगर समय रहते इस दिशा में ठोस कार्य नहीं हुआ तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। जलवायु परिवर्तन यानी ग्लोबल वार्मिंग धरती के तापमान में लगातार बढ़ोतरी होना है।


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