दिल्ली की चिंता

दिल्ली सरकार का पर्यावरण सुधार के लिए ऑड-ईवन व्यवस्था लागू करने का फैसला जितना महत्वपूर्ण है, उससे कहीं ज्यादा विचारणीय है। तीन वर्ष के बाद अगर फिर ऐसा ही फैसला लेना पड़ रहा है, तो इसका पहला और सीधा-सा अर्थ है कि दिल्ली सरकार ने विगत तीन वर्षों में कुछ नया नहीं सोचा है। स्वयं सरकार मान रही है कि ऑड-ईवन फैसले से दिल्ली के प्रदूषण में 10 से 13 प्रतिशत की कमी आई थी. हालांकि कुछ अध्ययन यह भी बताते हैं कि इस फैसले से प्रदूषण में कोई उल्लेखनीय परिवर्तन नहीं हुआ था। वर्ष 2016 में लोगों को जो परेशानी हुई थी या जो आर्थिक नुकसान हुए थे, उन सबका हिसाब शायद सरकार ने नहीं निकाला है। यह तो एक आपातकालीन उपाय है, इसका उपयोग तभी करना चाहिए, जब दूसरा कोई उपाय शेष न रह जाए। विशेषज्ञों का कहना है कि व्यावसायिक वाहनों से ही ज्यादा प्रदूषण होता है, लेकिन पिछली बार ऑड-ईवन का नियम व्यावसायिक वाहनों पर लागू नहीं था। तो क्या इस बार भी व्यावसायिक वाहनों को छूट मिलेगी?


दिल्ली में 10-11 दिनों तक ऑड-ईवन लागू करके प्रदूषण को । मात्र 10 से 13 प्रतिशत कम कर देना क्या पर्याप्त है? हां, यह सही है कि वाहनों से ज्यादा प्रदूषण होता है, लेकिन इस प्रदूषण को रोकने केदूसरे उपाय किए जाने चाहिए। घरेलू और औद्योगिक प्रदूषण रोकने के लिए सरकार को युद्ध स्तर पर काम करना चाहिए। विशेष रूप से दिल्ली में औद्योगिक और व्यावसायिक प्रदूषण रोकना सरकार के लिए टेढ़ी खीर है, जबकि निजी वाहन चालकों पर ऑड-ईवन के फैसले को लागू करना सबसे आसान है। यह संकेत है कि दिल्ली सरकार कड़े फैसले या नवाचार से बचना चाहती है। हम प्रदूषण को व्यापक रूप से कम करने की दिशा में बहुत सक्षम नहीं हो पा रहे हैं और हमारे अभी तक के प्रयास अधूरे हैं। दिल्ली में प्रदूषण की एक बड़ी वजह धूल है, उस पर काबू करने के लिए जो नियम-कायदे हैं, उन पर यह कारगर नहीं होगा। ठंड के शुरुआती दिनों में दिल्ली में जो भयानक प्रदूषण होता है, उसमें धूल के कणों की भी अच्छी-खासी मात्रा होती है। कंक्रीट के बढ़ते जंगल में हम न केवल पानी का रास्ता रोक रहे हैं, बल्कि हवा को भी थामने लगे हैं। दिल्ली में जो भारी आबादी रहती है, उसके स्वास्थ्य के लिए दिल्ली के आसपास रहने वाली आबादी की भी चिंता दिल्ली सरकार को करनी चाहिए। ऐसा नहीं हो सकता कि दिल्ली में शानदार हरियाली हो और आसपास के इलाकों में प्रदूषण, बीमारी, गंदगी की मार हो। दिल्ली में समग्र प्रदूषण को कम करने के लिए उन तमाम स्रोतों पर गौर करना होगा, जहां से समस्याएं पैदा हो रही हैं। पूरे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के प्रशासन के साथ पड़ोस की राज्य सरकारों को भी बैठकर सोचना होगा कि दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में आबोहवा जीने लायक बनी रहे। किस दिशा में जंगल लगाने-बचाने हैं, किस दिशा में औद्योगिक प्रतिष्ठान बसाने हैं, किन जल स्रोतों को मिलकर सदा साफ रखना है? केवल दिल्ली नहीं, पूरे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के बारे में सोचना होगा। जाहिर है, ये फैसले केवल दिल्ली सरकार के वश में नहीं हैं, लेकिन वह सबको साथ लेकर चलने की पहल कर सकती है। यह फैसला जिस समय पर हुआ है, इसे दिल्ली के आगामी चुनाव से भी जोड़कर देखा जाएगा


ऑड-ईवन योजना एक आपातकालिक उपाय है, लेकिन सच यह है को कम करने के रामबाण तरीके बहुत कम हैं


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