मानवता हर मनुष्य का धर्म होता है: संजीव
सरस्वती शिशु मंदिर भरलाय में 'मानवता का त्रास हरे' विषय पर निबन्ध लेखन किया गया। निबंध में बताया गया कि आज हमारे देश की यह स्थिति हो रही है कि जिस बच्चे के लिए माता पिता कई रात जागकर गुजारते है, आधा पेट खाकर उन्हें पढ़ाते लिखाते है। वही बच्चे आगे चलकर माता पिता को वृद्धाश्रम में भेज देते हैं। ऐसे त्रास को हरने के लिए कौन आएगा? वक्ताओं ने कहा कि आज के इस भौतिक युग में यदि मनुष्य, मनुष्य के साथ सद व्यवहार करना नहीं सीखेगा, तो भविष्य में वह एक-दूसरे का घोर विरोधी ही होगा। यही कारण है कि वर्तमान में धार्मिकता से रहित आज की यह शिक्षा मनुष्य को मानवता की ओर न ले जाकर दानवता की ओर लिए जा रही है। जहां एक ओर मनुष्य आणविक शस्त्रों का निर्माण कर मानव धर्म को समाप्त करने के लिए कटिबद्ध है, वहीं दूसरी ओर अन्य घातक बमों का निर्माण कर अपने दानव धर्म का प्रदर्शन करने पर आमादा है। ऐसी स्थिति में विचार कीजिए कि 'वसुधैव कुटुम्बकम' वाला हमारा स्नेहमय मूलमंत्र कहां मनुष्य आ समाप्त करने के गया? विश्व के सभी मनुष्य जब एक ही विधाता के पुत्र हैं और इसी कारण यह संपूर्ण विशाल विश्व एक विशाल परिवार के समान है, तो पुनः परस्पर संघर्ष क्यों? यह विचार केवल आज का नहीं है। समय-समय पर संसार में प्रवर्तित अनेक प्रमुख धर्मो में इस व्यापक और परम उदार विचारकण का सामंजस्य पूंजीभूत है। मानवता मनुष्य का धर्म होती है। इस अवसर पर प्रधानाचार्य संजीव कुमार रजक एवं समस्त स्टाफ उपस्थित रहा।