पापों का निश्चित परिणाम दुःख ही है और इससे कोई बच भी नहीं सकता। अज्ञान के कारण वह अपने और दूसरी सांसारिक गतिविधियों के मूल हेतुओं को नहीं समझ पाता और असंभव आशाएं रखता है। इस उल्टे दृष्टिकोण के कारण साधारण सी बातें उसे बड़ी दुःखमय दिखाई देती हैं, जिसके कारण वह रोता-चिल्लाता रहता है। अपने करीबियों की मृत्यु, साथियों की भिन्न रुचि, परिस्थितियों का उतार-चढ़ाव स्वाभाविक है। पर अज्ञानी सोचता है कि मैं जो चाहता हूं, वही होता रहे और इसी भाव में वह गोते लगाता रहता है। अज्ञान के कारण भूलें भी अनेक प्रकार की होती हैं। कई बार हमें जीवन में इतनी तकलीफ और कष्टों का सामना करना पड़ता है कि हम समझ नहीं पाते हैं कि आखिर यह सब क्यों हो रहा है और इन सबसे कैसे निपटा जाए। समस्त दुःखों का कारण है, अज्ञान, अशक्ति व अभाव। जो व्यक्ति इन तीनों कारणों को जिस सीमा तक अपने से दूर करने में समर्थ होगा, वह व्यक्ति उतना ही सुखी बन सकेगा। अज्ञान के कारण मनुष्य का दृष्टिकोण दूषित हो जाता है। वह तत्त्वज्ञान से अपरिचित होने के कारण उल्टा-सीधा सोचता और करता है। तद्नुरूप उलझनों में फंसता जाता है और हमेशा दुःखी बनता है।
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