RSS की ओर आकर्षण

नई दिल्ली। साहित्य में कहावतों का बड़ा महत्व है। उनके माध्यम से बड़ी बात को भी छोटे में कहा जा सकता है। पंजाबी में एक कहावत है- दुनिया मनदी जोरां नूं, लख लानत कमजोरां नूं। द्धदुनिया दमदार को ही मानती है, इसलिए कमजोर पर लाख लानत है।ऋ इसका ताजा उदाहरण देखिए। गत 30 अगस्त, 2019 को एक बड़े मुस्लिम नेता मौलाना अरशद मदनी दिल्ली में झंडेवाला स्थित संघ कार्यालय में राष्ट्रीय स्वयसे व क स हा के सरसंघचालक श्री मोहन भागवत से मिलने पहुंचे। इस भेंट का ब्यौरा जारी न होने से मीडियाकर्मी अपनी-अपनी तरह से इसका विश्लेषण कर रहे हैं।श्री अरशद मदनी का संबंध 'जमीअत उलेमा ए हिन्द' और देवबंद स्थित मुस्लिम द्धसुन्नीऋ शिक्षा के बड़े केन्द्र 'दारुल उल उलूम' से है। यहां के छात्र और समर्थक 'देवबंदी' कहलाते हैं। इस संस्था के साथ कई वाद और विवाद भी जुड़े हैं। कोई इसे आजादी के लिए लड़ने वाली संस्था कहता है, तो कोई इस्लामी आतंकियों का निर्माण और शरणस्थल। यहां के फतवे भी यदाकदा चर्चा में आ जाते हैं। इस संस्थान से जुड़े मदनी परिवार की पश्चिमी उत्तर प्रदेश की मुस्लिम राजनीति में बड़ी भूमिका है। इसलिए इसका कोई न कोई सदस्य सदा सांसद या विधायक रहता ही हैश्री मदनी संघ कार्यालय क्यों और किसके साथ गये, यह विषय गौण है। सच तो यह है कि ताकत की तरफ सब झुकते ही हैं। इन दिनों भारत की राजनीति में भा.ज.पा. का झंडा हाई हैलोग उसके पीछे असली ताकत संघ की मानते हैं। इसलिए राहुल गांधी संघ से लड़ने की बात कहते हैं, जबकि उनकी पार्टी के लोग भा.ज.पा.से संपर्क बढ़ा रहे हैं वैसे संघ या उसकी समविचारी संस्थाओं के प्रति उन लोगों का प्रेम नया नहीं है, जो कभी संघ के विरोधी होते थे। 1975 में इंदिरा गांधी ने अपनी भ्रष्ट सत्ता बचाने तथा संजय गांधी को स्थापित करने के लिए आपातकाल लगाया था। लोकतंत्र की इस हत्या के विरु) संघ के नेतृत्व में अहिंसक संघर्ष हुआ1977 के लोकसभा चुनाव में संघ ने पूरी जान लगा दी। अतः कांग्रेस हार गयी और जनता पार्टी की सरकार बनी। इस दौरान पूरे देश ने संघ की ताकत को देखासंघ की उपेक्षा या विरोध करने वालों को विश्वास ही नहीं होता था कि शाखा पर कबड्डी खेलने वाले जेल भी जा सकते हैं। इसलिए कुछ लोग जिज्ञासावश, तो कुछ उसकी शक्ति के कारण संघ की ओर आकर्षित हुए। उसी दौरान . दिल्ली की जामा मस्जिद के- इमाम बुखारी भी संघ कार्यालय पर सरसंघचालक श्री बालासाहब देवरस से मिलने आये थे। भेंट के कुछ देर बाद उन्होंने कहा कि नमाज का समय हो रहा है, इसलिए मैं चलूंगा। बालासाहब ने उनसे कुछ देर और रुकने का आग्रह करते हुए कहा कि आप चाहें, तो यहीं नमाज पढ़ लें। बुखारी की आंखें फैल गयीं। वे तो संघ को मुसलमानों का दुश्मन समझते थेय पर यहां तो ऐसा कुछ नहीं था। अंततः बुखारी ने वहीं नमाज पढ़ी और फिर दोनों में आगे बात भी हुई।पर कुछ समय बाद जनता पार्टी में शामिल सत्तालोलुप कांग्रेसियों और समाजवादियों के कारण सरकार पर संघ के वरिष्ठ प्रचारक इंद्रेशजी के संरक्षण में 'मुस्लिम राष्ट्रीय मंच' का गठन हुआ, जो समझदार, शिक्षित और देशप्रेमी मुसलमानों की एक सशक्त संस्था है। अटलजी के शासन के दौरान कई बड़े ईसाई पादरी भी सुदर्शनजी से मिलने आये थे।सुदर्शनजी के निधन पर दिल्ली में हुई श्रधांजलि सभा में इमामों की एक बड़ी संस्था के मुखिया डश्व. उमेर अहमद इलियासी भी आये थे। उन्होंने वहां अपने श्रेष्ठ हिन्दू पूर्वजों को याद कर कहा कि हम सौ प्रतिशत भारतीय मुसलमान हैं। उन्होंने पिछले दिनों हरिद्वार में स्वामी सत्यमित्रानंदजी की श्रांजलि सभा में भी भारत रत माता की जय के नारे लगवाये - और गौ माता को राष्ट्रमाता घोषित करने की मांग की। उस सभा में श्री मोहन भागवत के अलावा कई राज्यों के राज्यपाल और मुख्यमंत्री भी उपस्थित थे इसलिए जो लोग श्री मदनी के संघ कार्यालय जाने पर हैरान हैं, भगवान उन्हें लम्बी उम्र दे। चूंकि उन्हें ऐसे कई प्रसंग अभी और देखने हैं। संघ के एक वरिष्ठ प्रचारक द्धस्व.ऋ मोरोपंत पिंगले कहते थे कि जैसे सौर ऊर्जा संयंत्र से बिजली पैदा होती है, ऐसे ही शाखा और उसके कार्यक्रमों से भी संगठन रूपी बिजली पैदा होती है।


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