तीसरी बार खुला

तीसरी बार खुले चंदोरा बांध के गेट


एक माह से निरंतर हो रही वर्षा के कारण क्षेत्र की प्रमुख फसल सोयाबीन बर्बादी की कगार पर है। वहीं दूसरी ओर क्षेत्र की लगभग सभी प्रमुख सिंचाई परियोजनाएं अपना फुल टैंक लेवल पार कर चुकी हैं। क्षेत्र की प्रमुख चंदोरा सिंचाई परियोजना के बीते एक माह में तीसरी बार चार गेट एक-एक फिट खोले गए। सिंचाई विभाग से जुड़े सूत्रों ने बताया कि चंदोरा बांध जिसका फुल टैंक लेवल 685.95 मीटर है, शुक्रवार शाम 4 बजे इसका लेबल 685.87 मीटर पहुंच गया था, जिसके बाद अधिकारियों की उपस्थिति में इसके 4 गेट एक-एक फीट तक खोले गए। वहीं ताप्ती नदी पर बैतूल जिले में बनी दूसरी बड़ी सिंचाई परियोजना पारस ढ़ोह के गेट अभी खोले नहीं जा सके हैं। पारस दो बांध का वर्तमान लेबल 636 .27 था, जबकि इसका फुल टैंक लेवल 639.10 है। जिस प्रकार वर्षा निरंतर हो रही है और चंदोरा के गेट खोले गए हैं, पारसढ़ोह बांध का जलस्तर भी निरंतर बढ़ रहा है, जिसके कारण बांध के गेट कभी भी खोले जा सकते हैं |


जंगली सूअर ने खाई मक्का की फसल बर्बाद हुआ किसान 


मुलताई नगर से लगे ग्राम चौथिया के कृषक मनीराम पिता अमरया पंवार ने अपने खेत में एक हेक्टेयर में मक्का लगाई थी। सोयाबीन पहले ही अतिवृष्टि की भेंट चढ़ गई।अब मक्का ही उसके परिवार का एकमात्र आधार थी, लेकिन वह जब अपने खेत पहुंचा तो जंगली सूअरों द्वारा खेत में मचाए गए उत्पाद को देखकर वह अपना आपा खो बैठा। बदहाली में अपना होशो खोकर अपनी फसल की बर्बादी का मातम मनाते इस किसान का किसी ने वीडियो बना लिया, जो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। किसान के खेत का आलम यह है कि पूरा खेत जंगली सूअरों ने रौंद डाला। खेत में मक्का की फसल को खोजना कठिन हो रहा है वरिष्ठ सिंचाई अधिकारियों के आदेश से चंदोरा बांध के शुक्रवार को 4 गेट 1-1 फिट खोले गए है। मुलताई एवं पट्टन ब्लॉक के किसान अतिवृष्टि के कारण बदहाली के कगार पर खड़े दिखाई दे रहे हैं। निरंतर हो रही वर्षा के कारण सोयाबीन में लगी फल्ली गल कर गिरने लगी है। किसान बताते हैं कि वर्षा के कारण सोयाबीन भर नहीं पाई, अब आलम यह है कि फलियां पौधे से गल कर नीचे गिर गई हैं। सूर्य देव के दर्शन ना होने के कारण आष्टा ग्राम के आसपास बड़ी संख्या में सोयाबीन की फसल पर इल्लियों का प्रकोप हो गया है, जिसके कारण सोयाबीन फसल को खोजना कठिन हो रहा है। मुलताई क्षेत्र संपूर्ण प्रदेश में सोयाबीन उत्पादन क्षेत्र माना जाता है अधिकांश किसान सोयाबीन की फसल पर ही निर्भर होते हैं, जो की वर्षा काल की फसल होती है। अब सोयाबीन बर्बाद होने के बाद किसान बदहाल है, और शासन की ओर आशा भरी दृष्टि से निहार रहा है। बीते 3 वर्षों से अल्प वर्षा की मार झेल रहे किसान के लिए यह गंभीर संकट का समय है। पट्टन ब्लॉक के ग्राम डोहलन निवासी धनराज गव्हाड़े बताते हैं कि उन्होंने 10 एकड में सोयाबीन की फसल लगाई थी. लेकिन अतिवर्षा के कारण फसल के नाम पर कछ भी निकाला जाना शेष नहीं है। फलियां गल कर गिर गई हैं और जो सोयाबीन पर इक्का-दुक्का फलियां लगी भी हैं उसमें दाने बिल्कुल नहीं है। ग्राम से लगे सभी ग्राम पंचायतों के यही हाल हैं। डोहलन ग्राम के देवधर पटेल, हीरेंद्र माकोडे अपनी आपबीती बताते हुए कहते हैं कि बीते 3 वर्षों से वर्षा ना होने के कारण सोयाबीन की फसल नहीं हो पाई थी इस बार समय से वर्षा प्रारंभ हुई तो उनके परिवार की खुशियों का ठिकाना नहीं रहा था, लेकिन एक माह से हो रही निरंतर वर्षा के कारण अब फसल के नाम पर कुछ भी शेष नहीं है। अब परिवार के सामने आजीविका का प्रश्न खड़ा हुआ है। 



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