डिस्टेस्ड डेट क्या है

फाइनेंशियल मार्केट में तमाम ऐसे तकनीकी शब्द आते हैं, जिनका मतलब समझ नहीं आता है। ऐसे ही तकनीकी शब्दों में एक है 'डिस्ट्रेस्डडेट'।हाल में तमाम कंपनियों के दिवालिया होने की खबरों के साथ यह शब्द भी आपके सामने बार-बार आया होगा। आइए, यहां हम इसका आसान शब्दों में मतलबसमझते हैं। डिस्टेस्ड डेट का आशय ऐसी कंपनी के बॉन्डया कर्ज से है जो दिवालिया हो चुकी हैया इसकी कगार पर है। इन कंपनियों पर कर्ज का भार इतना ज्यादा हो जाता है कि इनके लिए अपना कामकाज जारी रखना मुश्किल हो जाता है। बिजनेस फेल हो जाने की यह मुख्य वजह होती है। डिस्ट्रेड डेट को काफी डिस्काउंट के साथ खरीदाजा सकता है। कारण है कि इनके मूल्यहीन या बेकार हो जाने का जोखिम होता है। कछ निवेशकों को डिस्ट्रेस्ड एसेट खरीदने में महारत होती है। ये कंपनी पर नियंत्रण पाने के मकसद से उसके डिस्ट्रेस्ड एसेट को तब खरीदते हैं जब वह दिवालिया प्रक्रिया में प्रवेश कर जाती है। जब हेज फंड जैसे निवेशक कंपनी के डिस्ट्रेड डेट को खरीदते हैं तो उनके हाथों में कंपनी के बिजनेस का काफी हद तक कंट्रोल चला जाता है। जब कंपनी अपने डिस्ट्रेस्ड डेट को बेचती है तो वह उसे खरीदने वाले की देनदार बन जाती है। कंपनी अगर इस देनदारी को अदा नहीं कर पाती है तो उसे इस कर्ज को खरीदने वाले निवेशकों को कंपनी का कंट्रोल देना पड़ सकता है। कैसे होता है मुनाफा निवेशक या संस्थान डिस्ट्रेस्ड डेट को तभी खरीदते हैं जब उन्हें यकीन हो जाता है कि कंपनी अपनी स्थिति से उबर नहीं पाएगी। इसका मतलब हुआ कि खरीदारों के पास अंत में कंपनी का कंट्रोल आ जाएगा। यह निवेशकों के लिए अपेक्षाकृत छोटा निवेश होता है। अगर कंपनी का कायाकल्पहो जाता है तो ये डेट डिस्ट्रेस्ड नहीं रह जाता है। इनका मूल्य काफी बढ़ जाता है। इससे निवेशकों को खासा मुनाफा होता है। अगरखरीदारों को लगता है कि कर्जमुक्त होने के बाद कंपनी अच्छा करेगी तो वे डिस्ट्रेस्ड डेट को खरीदते हैं।


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