कराची की चिंता

कराची को लेकर केंद्र सरकार और सिंध सरकार के बीच तनाव बहुत बढ़ गया है। प्रधानमंत्री ने कुप्रबंधन के शिकार कराची के लिए एक रणनीतिक समिति का गठन किया है। सिंध सरकार इसे अपने अधिकार क्षेत्र में हस्तक्षेप के रूप में देख रही है। घटनाक्रम उस वक्त नाटकीय हो गया, जब केंद्रीय विधि मंत्री ने कह दिया कि केंद्र सरकार अनुच्छेद 149 के तहत कराची के प्रशासन को अपने हाथों में ले सकती है। हालांकि मंत्री ने बाद में खूब सफाई दी, लेकिन तब तक पीपीपी के मुखिया बिलावट भुट्टो-जरदारी केंद्र सरकार पर आरोप लगा चुके थे कि वह कराची पर कब्जा करना चाहती है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि कराची बेहाल है। कचरा प्रबंधन, सीवरेज, सार्वजनिक-परिवहन, ट्रैफिक व्यवस्था ढह चुकी है। अपराध बहुत बढ़ गए हैं। अतः कोई आश्चर्य नहीं कि दुनिया में रहने लायक शहरों की सूची में कराची फर्श पर है। केंद्रीय, प्रांतीय और स्थानीय, तीनों ही स्तर पर सरकार इस बुरे हाल के लिए जिम्मेदार है। परवेज मुशर्रफ के समय इस शहर में कुछ विकास हुआ था। विशेष रूप से स्थिति तब और बिगड़ी, जब पीपीपी सरकार ने सिंध स्थानीय सरकार कानून को 2013 में बदलकर स्थानीय निकाय की शक्तियों को छीन लिया था। वास्तव में केंद्र सरकार को कराची का नियंत्रण अपने हाथों में नहीं लेना चाहिए। ऐसा किया जाता है, तो एक खतरनाक मिसाल पेश हो जाएगी। समाधान इसमें है कि प्रांतीय सरकार की क्षमता को बढ़ाया जाए। केंद्रीकरण में समाधान नहीं है। फिर भी अगर केंद्र सरकार ऐसा करती है, तो इससे सिंध में समस्याएं और बढ़ेगी। इससे शहर और गांव के बीच विभाजन भी बढ़ जाएगा। बेशक, कराची को मदद की जरूरत है। इसके लिए प्रांतीय सरकार की निगरानी में ही स्थानीय शासन को मजबूत करना होगा और प्रांतीय सरकार की निगरानी केंद्र सरकार को करनी पड़ेगी। अपनी-अपनी सीमा में रहकर काम करना होगा। जरूरी है कि स्थानीय प्रशासन को धन दिया जाए। अनावश्यक प्रयोग की बजाय कोशिश की जाए कि सभी ढंग से काम करें, ताकि कराची का प्रबंधन सुधर जाए। 


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