नाम नहीं बता पाए स्कूली बच्चे

जिले के कवि. लेखक. व्यंगकार के नाम नहीं बता पाए स्कूली बच्चे


जब तहसील मुख्यालय के प्रमुख स्कूल कहे जाने वाले शासकीय उत्कृष्ट विद्यालय और शासकीय कन्या हायर सेकेण्डरी स्कूल का रियलिटी टेस्ट लिया तो कई छात्र छात्राओं को ना तो हिंदी दिवस कब है इसकी जानकारी थी, ना ही जिले में जन्मे साहित्य की महान विभूतियों के बारे में। इन स्कूलों के हालात तो इतने बदतर है कि कई छात्र छात्रा हिंदी भाषा के रसों की संख्या तक नहीं बता पाए। जिन छात्र छात्राओं ने हिंदी भाषा के रसों की संख्या ठीक ठाक बताई तो वह रसों के पूरे नाम नहीं बता पाए। ऐसे में बच्चों की पढ़ाई के स्तर पर सवालिया निशान खड़े हो रहे हैं। एक तरफ जहां सारा देश 14 सितंबर को हिंदी दिवस मना रहा है। पूरी तहसील में जगह जगह हिंदी पखवाड़े का आयोजन किया जा रहा है। वही क्या वास्तव में हमारे देश में हमारे प्रदेश में हिंदी भाषा उचित स्थान पा रही है? क्या स्कों में हिंदी विषय के घटते महत्व और विदेशी भाषा के प्रति बढते लगाव अभिभावकों को कॉन्वेंट स्कूल की तरफ बढ़ने के लिए प्रेरित कर रहे हैं? और बड़े भी क्यों ना क्योंकि शासकीय स्कूलों में हिंदी विषय के प्रति उदासीनता साफ देखी जा सकती है। सिवनी मालवा तहसील के शासकीय स्कूलों में भी देखने को मिला जब हिंदी दिवस के उपलक्ष में हरिभूमि की टीम ने क्षेत्र के दो प्रमुख शासकीय हाई व हायर सेकेण्डरी स्कूलों का जायजा लिया। हरिभूमि की टीम ने शासकीय उत्कृष्ट विद्यालय और शासकीय कन्या उच्चतर माध्यमिक विद्यालय की कक्षाओं में पहंचकर कक्षा नवमी से लेकर कक्षा बारहवीं में अध्ययनरत छात्र छात्राओं से हिंदी दिवस और हिंदी विषय को लेकर सामान्य से सवाल पूछे, जिनका जबाव नहीं मिल पायाइन शासकीय हाई व हायर सेकेण्डरी स्कूल के बच्चे हिंदी भाषा का बेसिक ज्ञान तक नहीं बता पाए। कई बच्चे तो यह भी नहीं बता पाए हिंदी दिवस कब मनाया जाता है? क्यों मनाया जाता है? अब इसे विडंबना कहें कि हमारे प्रदेश में हिंदी भाषा का स्तर गिरता जा रहा है और उसमें शासन प्रशासन की उदासीना जिम्मेदार है क्योंकि सरकार हिंदी विषय के शिक्षकों के पद भी समाप्त करती जा रही है। उसको छठवें दर्जे पर ला दिया गया है अब इसका जवाबदार कौन है यह सोचने का विषय है।


ऐसे कैसे सुधरेगा विद्यार्थियों का भविष्य


सरकारी स्कूलों में जहां एक तरफ हिंदी पढ़ाने वाले शिक्षकों को तो हिंदी का अच्छा ज्ञान है लेकिन वह अपने ज्ञान को विद्यार्थियों तक नहीं पहुंचा पा रहे है। यह काफी चिंतनीय विषय है। जहां हाईस्कूल व हायर सेकेण्डरी स्कूल के विद्यार्थियों को होशंगाबाद जिले के माखननगर में जन्मे दादा माखनलाल चतुर्वेदी, डोलरिया तहसील के ग्राम टिगरिया में जन्मे भवानी शंकर मिश्र, तीखड जमानी में जन्मे हरिशंकर परसाईजैसी महान हस्तियों के जन्म स्थानों के बारे में ही जानकारी नहीं होना भी हिंदी की विभूतियों का सम्मान तो नहीं कहा जा सकता। साथ ही हिंदी के शिक्षक कैसा किताबी ज्ञान बच्चों को दे रहे है इसकी बानगी इससे ही पता चलती है कि हिंदी दिवस मना रहे स्कूलों के विद्यार्थियों को हिंदी दिवस कब मनाया जाता है, इसकी तारीख तक नहीं ढंग से नहीं पता। परीक्षा पास करने को लेकर रट्रतोता बनाए जा रहे छात्र छात्राओं को ऐसी शिक्षा मिल रही है कि वह ना तो सर्वनाम की परिभाषा छात्र छात्रा को समझ पा रहे है और ना हीरसो के नाम ढंग से एक ही बार में बता पा रहे है। और तो और रसों की संख्या को लेकर भी विद्यार्थी एक दूसरे का मुंह ताक रहे हैं। किताबी ज्ञान की पोल खुलने पर छात्रों के साथ शिक्षक भी शर्मिदा नजर आए।



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