ट्रीटमेंट के साथ प्रॉपर केयर

अल्जाइमर पेशेंट की करें ट्रीटमेंट के साथ प्रॉपर केयर


आया है कि 10 प्रतिशत छोटी उम्र के व्यक्ति (45 से 60 साल के) भी इस समस्या से ग्रस्त हैं। हालांकि उनकी संख्या बहुत कम है। उन्हें यह बीमारी या तो आनुवांशिक तौर पर मिलती है या फिर उनके ऊपर काम के दबाव से यह समस्या उत्पन्न होती है। विरासत में मिलने वाला म्यूटेशन जीन व्यक्ति को छोटी उम्र में ही अल्जाइमर का शिकार बना देता है। रोग होने के अन्य कारण बढ़ती उम्र इसका प्रमुख कारण है। पार्किंसन रोग, ब्रेन ट्यूमर, एंटी-एंजाइटी, हाइपर थॉयरायडिज्म, हाई ब्लड प्रेशर, कोलेस्ट्रॉल लेवल बढ़ने जैसी बीमारियों के लिए ली जाने वाली मेडिसिन के साइड इफेक्ट की वजह से। लंबे समय से एल्कोहल या स्मोकिंग करना जिससे मस्तिष्क में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है और इसकी स्थिति हो सकती है। डाइट में विटामिन बी 12, फोलिक एसिड जैसे पोषक तत्वों की कमी। । मेनोपॉज के बाद हार्मोनल परिवर्तन के कारण महिलाओं में होने वाला अवसाद।) एक्सीडेंट या सिर पर गंभीर चोट लगने के कारण भी ऐसा हो सकता है। मौत का कारण आंकड़ो के मुताबिक बड़ी उम्र में दुनिया भर में होने वाली मौतों में पांचवां प्रमुख कारण अल्जाइमर है। सामाजिक और आर्थिक दृढ़ता के अभाव में अल्जाइमर पीड़ित व्यक्ति का समुचित इलाज और देखभाल नहीं हो पाता। जिससे वह कई बार संक्रमण की चपेट में आ जाता है।  अल्जाइमर के मरीज की याददाश्त धीरे-धीरे कमजोर होती जाती है। अवसाद और कुंठा से ग्रसित रहना। समय, तारीख, स्थान और मौसम के बारे में भ्रम होना। मूड और व्यवहार में निरंतर परिवर्तन आना। सबसे अलग अपनी दुनिया में खोए रहना। आपत्तिजनक बातें करना, हस्तक्षेप करने पर कभी-कभी आक्रामक तक हो जाना। • याददाश्त कमजोर होने से अपनी दिनचर्या, यहां तक कि खाने-पीने और सोने का भी ध्यान न होना। । भाषा का प्रयोग ठीक प्रकार से न कर पाना। दूसरों को यहां तक कि परिवारजनों को पहचानने में गलती करना। । कुछ नया सीखने में कठिनाई होना। । दैनिक जीवन के रूटीन में अपने व्यक्तिगत कार्य ठीक से न कर पाना और दूसरों पर आश्रित होना। ) शारीरिक क्रियाओं पर नियंत्रण खो देनाउपचार अल्जाइमर के लक्षण दिखने पर जल्द से जल्द डॉक्टर के पास लेकर जाना चाहिए। हालांकि इसके उपचार की कोई विशिष्ट तकनीक नहीं है। कुछ दवाइयों से इसे नियंत्रित किया जा सकता हैं। न्यूरोलॉजिस्ट या मनोचिकित्सक, रोगी और उसके परिवार के साथ आपस में बातचीत करके रोगी की मानसिक स्थिति की पहचान कर इलाज करते हैं। बायोप्सी और ऑटोप्सी करके उसके ब्रेन की जांच के लिए सीटी स्कैन, एमआरआई या पीईटी स्कैन जैसे परीक्षण कराए जाते हैं। वैसे तो अल्जाइमर रोग का कोई इलाज नहीं है।  फिर भी फूड एंड ड्रग्स एडमिनिस्ट्रेशन (एफडीए) ने मरीज को होने वाली दूसरी समस्याओं को दूर करने और अस्थायी उपचार के लिए कुछ दवाओं की सिफारिश की है। जिन्हें मरीज की स्थिति के हिसाब से रिलैक्स करने के लिए दिया जाता है। अल्जाइमर के मरीजों के डिप्रेशन कम करने, उनके विचारों, भावनाओं, व्यवहार और शारीरिक क्रियाओ को यथासंभव नियंत्रित करने के लिए मनोचिकित्सा की मदद भी ली जाती है। मनोवैज्ञानिक कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी (सीबीटी) के माध्यम से मरीज को उनकी स्थिति के बारे में समझाते हैं। उन्हें पॉजिटिव सोचने, काम करने के तरीकों में बदलाव लाना, डायरी मेंटेन करने, रोजमर्रा में काम आने वाली छोटी छोटी चीजों को एक फिक्स जगह रखने की हैबिट डालने, परिवार के सदस्यों से तालमेल बिठाना सिखाया जाता है। अल्जाइमर के मरीजों के उपचार के लिए मेडिटेशन के साथ-साथ परिवार के सदस्यों को उनकी यथासंभव मदद और समुचित देखभाल करना भी बहुत जरूरी है।


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